बारिश

सोचा था बारिश होगी आज रात ,

सोचा था सच होगी मेरी बात ।

नियति क्यों नही करवाए आप , पावन पवन और मिट्टी से मेरी मुलाकात। जीवन में आ जाती थोड़ी बहार, कुछ खुशियों का सरगम आ जाता। कुछ छन के लिए सब चिंता चली जाती। जीवन में आ जाती मिट्टी की सौंधी सुगंध जिससे जीवन से निकल जाती दुखों की दुर्गंध।

कैसा है ये जीवन जो एक बारिश की चाह में है कुछ पहुंच गया हृदय में कुछ अभी राह में है।

इंतजार करते करते आंखे तरस रही है। अदभुत लिया नारायण आपकी गर्मी इस कदर बरस रही है। अंखियां मिलने को तरस रही है।पवन का वेग देखकर हृदय में भर गया था उल्लास , पवन छू के गुजरेगी, थोड़ी बूंदे मिलेगी मिट्टी से गले लगाएंगी ।कुछ कहानी बताएंगी , कुछ समय संग बताएंगी, कुछ हसाएंगी कुछ मुस्कान चेहरे पे लाएंगी। ना हुआ कुछ ऐसा , जो चाहा था वैसा। आखिर क्यों नही हुआ कुछ ऐसा आज।

Write a comment ...

Saloni044

Show your support

Hello fellow readers and writers! Your support would be extremely helpful for me to deliver good content and pursue new avenues in writing. Thank you!

Write a comment ...